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जाने स्वम् को

swabhimaan
swabhimaan
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मनुष्य मन का विज्ञानं समझना एक टेढ़ी खीर होता है .एक ही नियम या निष्कर्ष सभी मनुष्यो पर लागू नहीं होता .सिर्फ हालात या परिस्थितियां देखकर अनुमान लगाया जा सकता है. कभी कभी मन किसी चीज़ को पाने की व्यर्थ चेष्टा करता है. और न मिलने पर अवसाद का शिकार हो जाता है .वह अपनी हार या बेचैनी को क्रोध के रूप में दुसरो पर निकालता है .खुद तो दुखी होता है और अपने vyabhaar से ओरो को भी दुखी कर देता है.मष्तिष्क का संतुलन बनाये रखना कभी कभी bahut कठिन हो जाता है .कहना आसान है ये करना चाहिए , ये नहीं करना चाहिए ,पर जब हालात बेकाबू हो जाते है तो ना चाहने पर भी गुस्स्से का एक jwalamukhi futta है जो अपने sath anek samsyao को utpannn करता हुआ vistaar पता है.लेकिन जब ठंडा होता है तो बस राख प्राप्त होती है parinaamswaroop .पर उस राख में chhupe होते है कुछ मोती ,बस उन्हें ढूंढने के लिए पारखी नज़र की ज़रूरत होती है .लेकिन हार बार aisa नहीं होता.कभी कभी कुछ नया जनम लेता है जो इतिहास रच देता है.रामधारी सिंह दिनकर की की ukti याद आती है ,जब किसी के अहम पर चोट होती है तो उस अहम से बढ़कर कोई चीज़ जनम लेती है. दुःख,निराशा kshobh ,ख़ुशी कहने को तो matr भाव है हमारी ज़िंदगी के,लेकिन कभी कभी ये पल दो पल को utapann hokr ही सर्जन या विध्वंस कुछ भी कर sakte है. दोष हालात का नहीं किस्मत का नहीं ,उन परिस्थितियों में hamare आचरण का .हम अपने मन का संतुलन कैसे बनाये रखते है ये mehtvpurn है.किसी को अपने उप्र हावी न होने दिया जाये
मनुष्य परमात्मा का ही अंस है.ईश्वर ने प्र्तेक मनुष्य को कुछ न कुछ विशेष गन दिया है.ज़रूरत है बस अपने आप को पहचानने की.अपनी कमजोरियों के साथ साथ अपनी ताकत (विशेषताओ )को पहचानने की .मनुष्यता एक जीने की कला है. अफ़सोस इस पृथ्वी पर ७० % व्यक्ति ही सिर्फ जीने के लिए जी रहे है ,उन्हें आभास ही नहीं है वो क्या हैं??क्या कर सकते है??वे भीड़ का हिस्सा बनकर रह गए .जबकि ईश्वर ने प्र्तेक व्यक्ति को पृथ्वी पर किसी न किसी उद्देश्य के निम्मित भेजा है.
किसी विषय के सुव्यस्थित ज्ञान को विज्ञानं कहते है.और सुख दुःख में संतुलित रहकर मुस्कराहट बाँटने को ज़िंदगी कहते हैं.’जिओ और जीने दो’ की नीति अपनाये.समस्याएं तो सबके जीवन में आती है,उनसे हारना, घबराना कैसा? असफलताएँ भी बहुत कुछ सीखा जाती है.करोड़पति होना,सभी सुख सुविधाओ का होना सफलता की गारंटी नहीं है,आप अपनी ज़िंदगी से कितने संतुस्ट है!जीने का ढंग कैसा है? ये najariya तय करता है आपकी सफलता को.
कुछ लोगो में आदत hoti है हर समय रोने झिक्ने की,,किसी न किसी की बुराई करने की.उन्हें हर जगह बुराई नजर आती है.yeh आदत ठीक नहीं.इससे apna व्यक्तित्व ही घटता हैं,पर्भु ने इतनी सुन्दर सृष्टि बनाई है,उसका dhanyabad करना चाहिए.मनुष्य में कृतज्ञ परवर्ती का होना आवस्यक है. खुस रहना है तो ये सोचिये की आपने समाज को क्या दिया ,आपने देश के लिए क्या किया?ये न सोचे आपको क्या मिला?देना सीखे ,ख़ुशी बाँटिये.फिर ये साडी दुनिया सुन्दर नज़र आएगी.
अपनी tulna किसी से न करें.आप स्वम् में एक विशिस्ट व्यक्ति हैं. हो सकता है कोई एक गन आपके अंदर न हो वह dusre में हो,लेकिन इसमें दुखी होने की ज़रूरत क्या है?आपसी सहयोग और समन्वय की भावना होनी चाहिए.खुद आगे बढ़ना है तो पहले ओरो को आगे बढ़ाओ, टीम भावना का होना बहुत ज़रूरी है.ज़िंदगी ज़िन्दाजीली का नाम है .अपने आप को पहचाने ,पहले स्वम् से प्यार करें.साड़ी दुनियस प्यार करेगी आपको.आप खुस रहेंगे तभी दुसरो को ख़ुशी दे सकते हैं.

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