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वर्ष २०१४:कुछ खट्टा कुछ मीठा …………पर बहुत खास

swabhimaan
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कुछ लम्हे जो खास थे ,ज़िंदगी बदल गयी
कुछ कांटे मिले रिश्तो से ,ज़िंदगी बदल गयी …………………..
वर्ष २०१४ की शुरुआत तो अच्छी हुई थी ,मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खबर मुझे १५ जनवरी २०१४ को मिली जब मुझे एहसास हुआ ,मैं माँ बनने वाली हु .प्रेगनेउज़ से कन्फर्म करने के बाद मैं बहुत ख़ुश हुई ,सबसे पहले अपने पति को बताया पर उधर से मिला ठंडा रेस्पोंस .ऐसा नहीं पति खुश नहीं थे ,पर वो बड़े गंभीर वाले मूड में रहते हैं अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करने के लिए उन्हें बच्चा बनना पड़ता .ससुराल में सबको बताया पर सबने ‘ठीक है ‘जैसी प्रतिक्रिया दी .मैं सोच रही थी जैसे फिल्मो में होता है सब बहुत खुश होंगे ,मुझे बहुत प्यार करेंगे ,अपनी पलकों पर बिछायेंगे ,पर रील लाइफ और रियल लाइफ में बड़ा अंतर होता है .३० जनवरी २०१४ को डॉ कुसुम से चेकप कराया , डॉ के प्रमाणपत्र के बाद मेरे पति ने अपना पूरा फ़र्ज़ निभाया,मेरी पूरी केयर की .ख़ुशी ख़ुशी सात महीने कैसे बीत गए पता ही नहीं चला .
आठवे महीने में अचानक से तबियत ख़राब होने पर मायके से मम्मी को बुलाना पड़ा .वैसे वो पापा को अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाती ,पर मेरे लिए आने को तैयार हो गयीं .उन्हें डर था कहीं मैं भी लापरवाही के कारन मर न जाऊं.क्युकी पिछले साल ही मेरी बुआजी की लड़की डिलिवरी के तुतंत बाद ही मर गयी थी .सबकुछ अच्छा चल रहा था.माँ की देखभाल और पति के प्यार ने शारीरिक कष्टो की पीड़ा को कम कर दिया था .६ सितमबर को अचानक से तबीयत ख़राब होने के कारन डेल्ही बिरमानी हॉस्पिटल भर्ती कराना पड़ा .तीन दिन तक दवाइयाँ देकर नॉर्मल डेलिवरी का intzaar किया गया , पर bachhedani का muh न khulne से आपरेशन करना ज़रूरी हो गया .९ सितमबर का दिन था, आप्रेसन का नाम क्या आया ,मेरी तो ज़िंदगी में तूफ़ान आ गया .किसी को मेरी या मेरे बच्चे की चिंता नहीं थी,मेरी ससुरालवाले मेरे रूम के बाहरपंचायत कर रहे थे मुझे गाँव ले जाने की .जबकि आप्रेसन तो डेल्ही में भी हो sakta था .पर मेरी सास नॉर्मल डेलिवरी के लिए गाँव ले जाना चाहती थी .जबकि डॉ ने साफ़ मन कर दिया था नॉर्मल डिलिवरी नहीं होगी. मैं गाँव जाना नहीं चाहती थी . मैं अपने मायके बिजनौर चाहती थी .इस समय मेरे पति ने मेरा पूरा साथ दिया और मेरी डिलिवरी बिजनौर ही करायी .पर बच्चा होते ही सास ने पति के साथ मिलकर हंगामा कर दिया .बच्चा रात्रि १२ बजकर ३३ मिनट पर हुआ था. सुब्हे जब मेरे मम्मी पापा मुझसे मिलने आये तो उन्हें अपमानित करके भगा दिया गया .उनसे कोई भी सहायता लेने को मना कर दिया .मुझे तो सही से खुश होने का mauka ही नहीं मिला .एक तरफ मेरी ससुराल थी एक तरफ मायका. मेरा बच्चा मेरा नन्हा सा दिव्यांश जिसने मुझे माँ होने का गौरव दिया ,इतनी बड़ी ख़ुशी दी लेकिन उसके जनम से ही मेरे मायकेवाले मुझसे दूर हो गए .ख़ुशी का लम्हा आंसुओ में जहर रहा था.बिजनौर आने का फैसला मेरा था ,लेकिन सजा मेरे मम्मी पापा को मिली .यहाँ गलती मेरे पति की थी ,उन्होंने अपनी मम्मी के कहने पर मेरे मम्मी पापा से झगड़ा किया .उन्हें बुरा भला कहा .khair जो हुआ so हुआ .ख़ुशी aayee आंसू लेकर .गुलाब मिला कांटे लेकर .

१७ सितमबर को मैं अपनी ससुराल महावतपुर गाँव चली गयी .तूफान अभी थम नहीं था .न जाने हँसती खेलती ज़िंदगी को किसकी नज़र लग गयी .सब कुछ tik चल रहा था .एक दिन (३ अक्टूबर) हमे बिजनौर जाना था .नियमित चेकप के लिए डॉ के पास .मैंने सोचा दवाई लेने जाउंगी तो अपने मम्मी पापा से भी मिल आउंगी ,उसी दिन मेरी बहन का जन्मदिन भी था .जबकि गाँव में ही मैंने अपने पति से इसके लिए पूछ लिया था लेकिन समय को तो कुछ और ही मंजूर था .सिर्फ आधे घंटे के लिए मैं अपने मम्मी पापा से मिलने क्या गयी मेरी ज़िंदगी में कोहराम मच गया .जो पति मुझे बहुत प्यार करता था ,जिसके लिए मेरी ख़ुशी सबसे महत्वपूर्ण थी ,वो मुझे बीच राह chhodkr चला गया.झूठ बोलकर .मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था मेरे पति मेरे साथ ऐसा कर सकते है. कुछ गलतफहमियों की वज़ह से हालत इतने बिगड़े बात तलाक़ तक पहुँच गयी. पांच दिन तक रो-रोकर मेरा बुरा हाल हो गया तो मुझे अपने पति पर बहुत गुस्सा आया मैंने भी सोच लिया था मई aise पति के पास वापिस नहीं जाउंगी .लेकिन अपने पापा के समझने पर मुझे ससुराल जाना पड़ा. मुझे बहुत दुःख हुआ यह जानकर की पापा को मेरे आत्मसम्मान से ज़्यादा अपनी badnaami की चिंता थी.बहुत मुस्किल समय था मेरे लिए, मुझे कुछ samajh नहीं आ रहा था मैं क्या karun ?
लेकिन jate – jate versh २०१४ ने सबकुछ ठीक कर दिया.आज मई अपने पति और बच्चे के साथ बहुत खुश हु और हँसते खेलते अपने बेटे के बचपन का आनंद ले रही हु .बहुत कुछ सीखा गया ये साल,कुछ खो गया.कुछ मिल गया.भगवानजी ऐसा तूफ़ान फिर कभी ना आये मेरी ज़िंदगी में की मुझे अपने पति और अपने परिवार से दूर होना पड़े . ……………

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