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यह घटना ५ दिसंबर २०१३ की है .अपनी aankho dekha vivran prastut kar rahi hu .main स्वम भी इस फिजूलखर्ची के खिलाफ हूँ .जितना पैसा हम मध्यमवर्गीय लोग झूठी शान दिखने के लिए ,उधर लेकर विवाह में खर्च करते हैं उसी पैसे से अनेक गरीब लड़कियों के हाथ पीले हो सकते हैं , कुछ भूखो को भोजन मिल सकता है , कुछ अनाथ बच्चो की पढाई हो सकती है .एक ऐसी ही शादी जो बहुत ही करीबी रिश्तेदारी में आती है ,उसमे जाना हुआ .किसानी ( खेती पर आश्रित ) परिवार था .मकान भी उसी देसी स्टाइल में बने हुए थे ,बाहर चबूतरा ,या बैठक ,अंदर जनाना .उनकी एकलौती लड़की की शादी थी , सायद इसी कारन बिना सोचे समझे पैसे की बर्बादी की गयी थी .
दोपहर का १ बजा था, जब हम वहां पहुंचे ,हमे मकान के दुमंजले पर ठहराया गया था .उस समय गाँव की दावत चल रही थी .पुराने ज़माने में देखने को मिलती थी ऐसी दावत , कही कहीं जहाँ शिक्षा का आभाव है ,वहां भी ऐसे नज़ारे देखने को मिल जाते हैं. उरद-चावल तौलकर बनाये जाते है और पर गाँव को दावत दी जाती है , वहां भी कुछ ऐसा ही था. अब इसे भी पैसे की बर्बादी ही कहा जायेगा ,आज के सिमित परिवारो के युग में पुरे गाँव को दावत ,चाहे सबसे जान-पहचान भी न हो. ऐसी दावतों की एक और खासियत होती है , कुछ लोग जो खाने आते हैं , पारस के नाम पर घर को भी ले जाते है पतीले भर -भर कर पुरे दिन का भोजन समपुर परिवार के लिए .साम ६ बजे तक यह कार्य पूर्ण हुआ . इसके पश्चात लड़केवालों (बारात ) के लिए आधुनिक तरीके (बुफे सीस्टम )में भोजन की व्यवस्था की गयी थी . पहले नाश्ते का कार्यक्रम था .लगभग ७०० व्यक्तयों के लिए भोजन था . सभी फास्टफूड टिक्की ,चौमीन ,बर्गर ,रसगुल्ले ,आइसक्रीम गोलगप्पे इत्यादि ……………….उसके तुरंत बाद ही बोजन की व्यवस्था थी. नाश्ते और भोजन के कुछ व्यंजन काम करके दोनों की व्यवस्था एकसाथ की जाती तो सायद कुछ धन की बचत हो सकती थी .ऐसी पार्टियो में भोजन की बहुत बर्बादी होती है
अब चलते है अगले पड़ाव की ओर अथार्त जयमाला की रस्म अदायगी .जहाँ वार-वधु को राज शिंघासन पर शाही अंदाज़ में बैठाया जाता है .ओर वार वधु एक दूसरे के गले में फूलो की माला का आदान प्रदान करते है .यहाँ एक ओर क्रिया अधिक की गयी थी जैसा की फिल्मो ओर धारावाहिको में दिखाया जाता है भव्य विवाह समोरह . माध्यम वर्ग परिवार भी उनकी नक़ल करते देखे जा सकते है .तो यहाँ भी कुछ ऐसा ही नजारा था .गोल-गोल घूमने वाला स्टेज ज़मीन से लगभग १० फुट ऊंचाई पर सजाया गया था ,स्टेज के दोनों ओर सीढ़िया थी , जिनपर चढ़कर वार वधु को स्टेज पर पहुंचना था. कभी कभी नक़ल करने में कुछ कमी रह जाती है ओर हसी का कारण बन जाती है . स्टेज के घूमने ओर फूल बरसने ओर छायाचित्र लेनेवालों की टाइमिंग ख़राब होने के कारन यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ .जितना पैसा इस तामझाम पर खर्च हुआ था उतना मेहमानो के आथित्य पर नहीं. उस हाल में मेहमानो के बैठने की व्यवस्था बहुत ख़राब थी .इस रस्म के पश्च्चातशाही अंदाज़ में जयमाला ओर परिवलो के फोटोसेसन का कार्यक्रम था .इन सभी रस्मो के बीच अगले दिन का सुभारम्भ हो चूका था. तारो की मनोहारी बेला में सात फेरो का परमरागत रूप से आयोजन किया गया ओर दुल्हन की भावभीनी विदाई के बाद हम भी अपने घर वापिस लोट आये .
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