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प्रकति को सजा

swabhimaan
swabhimaan
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अचानक से आये एक वायुयान ने
मचा दी हलचल आकाश में
बेचैन हो परिंदे उड़ने लगे
इधर -उधर
खो अपनी स्वाभाविक चाल
हो गए अपने समूह से दूर
हे निष्ठुर मानव
क्या ज़मीन कम लगी तुझे
धरती पे क्या कम था तेरा आतंक
कि कर दी दखल तूने परिंदो के जहाँ में
कम से कम उन मासूम परिंदो के
जहाँ को तो बक्शा होता
निसंदेह मानव ने प्रगति का इतिहास रचा है!
पर किस कीमत पर?
कभी क्यों नहीं सोचा?
प्रकृति से पंगा न ले मानव
क्रोध इसका पचा नहीं पायेगा
अब भी वक़्त है संभल जा
धरती को बचा ,प्रकृति को सजा……………………..

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