swabhimaan
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कभी कभी मै
बहुत सोचती हु
क्यों सोचती हु ,पता नहीं
पर बहुत सोचती हु
एक अजीब सी बेचैनी
नहीं रहने देती मुझे शांत
कुछ जाने -अनजाने प्रश्न
कर देते है तबाह मेरा सुख -चैन
ढूंढती हु उनके ज़बाब
पर नहीं आता कभी -कभी
समझ में कि आखिर
क्या है मेरा होना
क्या है मेरी पहचान
इस समाज ,और अपने देश के
हालातो से नहीं रह सकती अनभिज्ञ
मै कवि हूँ न
तो मेरा फ़र्ज़ है इन सबके बारे में सोचना
पर मै चाहकर भी तो नहीं बदल सकती
इन हालातो को
और इन्ही सवालो को सोचते हुए
चली जाती हु खुद से दूर
बहुत दूर
और रह जाता है फिर एक
अधुरा प्रश्न ???
क्या है मेरा होना
क्या है मेरी पहचान ………
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