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बेचारा पुरुष

swabhimaan
swabhimaan
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क्यों नहीं सोच पाती लड़कियां
सिर्फ अपने बारे में
क्यों सुख तलाशती है वो पुरुष की अधीनता में
क्यों चाहेये पुरुष का कन्धा
दुःख हल्का करने के लिए
क्यों नहीं निकल पाती , इस चक्र्वयूह से
क्यों नहीं नफरत कर पाती वो पुरुषो से
क्यों नहीं नकार देती पुरुषो का अस्तित्व
क्यों हर बार बस
हारकर ही खुश हो जाती है
ऐसा क्या है जो उन्हें रोके रखता है
इस भ्रम की दुनिया से बाहर नहीं आने देता
क्यों नहीं एक अलग दुनिया बनाती अपने लिए
क्यों समर्पण में ही वो अपनी जीत समझती है
एक बार बगावत करके तो देखे
कांप जाएगी ये दुनिया नारी शक्ति से
नारी अबला नहीं शक्ति है
फिर क्यों अनजान रहती है खुद से
जिस दिन नकार दिया नारी ने
पुरुषो का अस्तित्व
प्रलय आ जाएगी , जीवन नष्ट हो जायेगा
त्राहि माम् त्राहि माम् करता बेचारा पुरुष
नज़र आएगा ……………………….

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