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एक दिन

swabhimaan
swabhimaan
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इस तरह बिखरी हुई देखकर जिंदगी को एक दिन
सहसा दर गयी मै , कोई तो छोर मिले
किधर से समेटी जाएगी , कोई तो मिले चिन्ह
क्यों नींद भली लगने लगी , क्या हकीकत से डरने लगी
क्यों पहेली हो गयी , अनसुलझी सहेली हो गयी
सब गणित हुए फेल, बार -बार गिनती रही
जैसे कोई सवाल ऊँगली पर गिन गिन
कोई तो हल निकालना होगा
सपना नया बुनना होगा
नहीं उलझना किसी फंदे में जिंदगी के
स्वं अपना रास्ता चुनना होगा
पथरीली राहें, कठिन डगर हैं
संकल्प मेरा भी मजबूत मगर हैं
जागी सहसा नींद से
टूटी झांझर जैसे बजी हो
छिन-छिन -छिन ………………….

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