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मन का बसंत

swabhimaan
swabhimaan
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पीली सरसों ,ओढ़ धानी चुनरिया
मंद -मंद मुस्काई है
दूर जिधर तक द्रष्टि जाये
बसंत से कली -कली मुस्काई है
पीताम्बर है सभी के वासन
कैसी मनोहर छटा छाई है
देख प्रक्रति का बसंत
मन की उमंगें लहराई है
भूलकर सारी दुनिया को
क्यों ये आँखे इन फूलों से टकराई हैं
नया जोश ,नई उर्जा का संचार हुआ है
गेहूं में जीवनशक्ति आयी है

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