swabhimaan
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किसी चेहरे पर छायी उदासी ने
मन को छुआ
द्रवित हो रहा था उसके दुःख में
पर ,दूजे ही पल
किसी चेहरे की चालाकी से
भर उठा मन घ्रणा से
एक ही पल में कहाँ गयी वो
ह्रदय की विशालता
कहाँ गया वो अपनापन
इतनी शीघ्र ,अनायास ही
ह्रदय परिवर्तन
समझ में तो नहीं आया
बल्कि , छोड़ गया एक
सवाल मानस पर
क्यों कोई अच्छा लगता है
क्यों कोई अपना लगता है
किसी से कटा -कटा रहता है
ये मन केसे रूप बदलता है
छाव कहीं ,कहीं धुप
कहीं मेघ बरसता है
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